Facts About Shodashi Revealed
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दिव्यौघैर्मनुजौघ-सिद्ध-निवहैः सारूप्य-मुक्तिं गतैः ।
इस सृष्टि का आधारभूत क्या है और किसमें इसका लय होता है? किस उपाय से यह सामान्य मानव इस संसार रूपी सागर में अपनी इच्छाओं को कामनाओं को पूर्ण कर सकता है?
ध्यानाद्यैरष्टभिश्च प्रशमितकलुषा योगिनः पर्णभक्षाः ।
वन्दे तामहमक्षय्यां क्षकाराक्षररूपिणीम् ।
This mantra is surely an invocation to Tripura Sundari, the deity getting tackled On this mantra. This is a request for her to satisfy all auspicious wants and bestow blessings on the practitioner.
ऐसा अधिकतर पाया गया है, ज्ञान और लक्ष्मी का मेल नहीं होता है। व्यक्ति ज्ञान प्राप्त कर लेता है, तो वह लक्ष्मी की पूर्ण कृपा प्राप्त नहीं कर सकता है और जहां लक्ष्मी का विशेष आवागमन रहता है, वहां व्यक्ति पूर्ण ज्ञान से वंचित रहता है। लेकिन त्रिपुर सुन्दरी की साधना जोकि श्री विद्या की भी साधना कही जाती है, इसके बारे में लिखा गया है कि जो व्यक्ति पूर्ण एकाग्रचित्त होकर यह साधना सम्पन्न कर लेता है उसे शारीरिक रोग, मानसिक रोग और कहीं पर भी भय नहीं प्राप्त होता है। वह दरिद्रता के अथवा मृत्यु के वश में read more नहीं जाता है। वह व्यक्ति जीवन में पूर्ण रूप से धन, यश, आयु, भोग और मोक्ष को प्राप्त करता है।
The trail to enlightenment is commonly depicted being an allegorical journey, Together with the Goddess serving given that the emblem of supreme energy and Vitality that propels the seeker from darkness to light-weight.
ब्रह्माण्डादिकटाहान्तं जगदद्यापि दृश्यते ॥६॥
हन्यादामूलमस्मत्कलुषभरमुमा भुक्तिमुक्तिप्रदात्री ॥१३॥
श्रीचक्रान्तर्निषण्णा गुहवरजननी दुष्टहन्त्री वरेण्या
यहां पढ़ें त्रिपुरसुन्दरी कवच स्तोत्र संस्कृत में – tripura sundari kavach
The Mahavidya Shodashi Mantra fosters psychological resilience, encouraging devotees strategy lifetime having a relaxed and continuous thoughts. This benefit is effective for the people enduring strain, mainly because it nurtures interior peace and the chance to keep psychological balance.
The intricate romantic relationship amongst these groups as well as their respective roles during the cosmic purchase is really a testomony into the abundant tapestry of Hindu mythology.
श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥१०॥